अरुणा (हमारी नौकरानी) शाम की पारी में बगीचे में सूखी पत्तियां बटोरने के लिये झाड़ू लगाया करती है। वह मच्छरों से बचाव के लिये मेरी एक पूरी बांह की पुरानी कमीज अपनी साड़ी के ऊपर पहन लेती है। उसके लिये एक ओडोमॉस की ट्यूब भी खरीदी है, वह भी खुले हाथ पैर पर लगाती है। पर बगीचे के मच्छर फिर भी उसे नहीं बक्शते।
बीस मिनट झाड़ू लगाने के बाद वह दस मिनट बैठ कर मच्छर पुराण कहती है। रोज लगभग एक सी बात होती है, पर शायद कहने से मच्छर